जयपुर। संयुक्त किसान मोर्चा, शाहजहांपुर-खेडा बॉर्डर, राजस्थान की ओर से गुरुवार को पिंकसिटी प्रेस क्लब में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में किसान मोर्चा के अगुआ नेताओं ने केंद्र सरकार को आड़े हाथों लिया। उन्होंने साफ कहा कि यदि सरकार फसल काटने के समय को लेकर कुछ सोच रही है तो यह समझ ले कि किसान फसल भी काटेगा और मोदी-शाह का गुरूर भी। उन्होंने आगामी पांच राज्यों के चुनावों में भाजपा का विरोध करने की रणनीति भी तैयार की है। संवाददाता सम्मेलन को संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से का.अमराराम, राजाराम मील, तारा सिंह सिद्धू और डॉ. संजय माधव ने संबोधित किया। इन्होंने केंद्र सरकार, मोदी सरकार या भाजपा सरकार बोलने की बजाय “केंद्र की भाजपा-आरएसएस की मोदी सरकार” संबोधित करते हुए कहा कि इनकी हठधर्मिता, क्रूर दमनकारी नीतियों, तरह-तरह से झूठ भ्रम फैलाकर आंदोलन को बदनाम करने की तमाम चालों और कोशिशों के बावजूद किसान-आंदोलन ने देश के किसानों और आम जनता के बीच अपनी जड़े गहरी जमा ली हैं। देशभर में चल रहे किसान आंदोलन ने अब राष्ट्रव्यापी स्वरूप धारण कर लिया है। स्वतंत्रता आंदोलन के बाद शायद ही कोई आंदोलन हो जो इतना लंबा चला हो और उसे इतना व्यापक जन समर्थन और आंदोलन को चलाये रखने के लिए अपार जन सहयोग मिला हो। उन्होंने कहा कि सरकार की लगातार जारी जन विरोधी, कार्पोरेट घरानों के हित साधन करने वाली घोर पूंजीवादी नीतियों के खिलाफ जनता का आक्रोश लगातार बढ़ता जा रहा है। सरकार ने किसानों, मजदूरों के खिलाफ लगातार कदम उठाये हैं। देश की सारी दौलत कार्पोरेट घरानों विशेषकर अंबानी, अडानी सहित अपने चहेते पूंजीपतियों को लुटाई जा रही है। आजादी के बाद जनता की खून पसीने की कमाई से बनाये गए सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को कौडिय़ों के भाव बेचा जा रहा है।

आम जनता के काम आने वाली रसोई गैस, डीजल, पेट्रोल के भाव आसमान पर पहुंच गए है और महंगाई, बेरोजगारी से जनता बुरी तरह से परेशानी में है। इन्हीं नव उदारवादी आर्थिक नीतियों को आगे बढ़ाने के क्रम में ये तीन किसान व खेती किसानी विरोधी काले कानून सरकार लेकर आई जिनका भारी विरोध किसान आंदोलन के जरिये हो रहा है। इसके अलावा सरकार बिजली बिल भी पारित करवाना चाह रही है जिससे राज्य अपने लोगों को अपनी मर्जी से कोई सब्सिडी, रियायत किसानों, गरीबों और समाज के जरूरतमंदों को नहीं दे सकेंगी। किसान विरोधी इन कानूनों के जरिये स्थापित कृषि उपज मंडियों, उनसे जुड़े व्यापार खाद्य-कारोबार, खेती-किसानी सभी का एकाधिकार पूंजीपतियों और कार्पोरेट घरानों को सौंपने की चाल है। स्टॉक सीमा हटा कर मुनाफाखोरी, जमाखोरी की खुली छूट दे दी गयी है। सब तेजी-मंदी उन्ही के हाथ रहेगी। उत्पादक के रूप मे किसान और आम उपभोक्ता दोनों की खुली लूट कर मुनाफा कमाने की खुली छूट दे दी गयी है।

किसान को उसकी उपज की एमएसपी पर खरीद की कोई गारंटी देने को सरकार तैयार नहीं है और न ही सरकारी खरीद जारी रखने का कोई प्रावधान है। इसका नतीजा यह निकलेगा कि सब सार्वजनिक वितरण प्रणाली के द्वारा जो अनाज गरीबों को सस्ते मे वितरित किया जाता है भविष्य में वह न तो खरीदा जायेगा और ना ही वितरित होगा। देश के संविधान के अनुसार कृषि और कृषि-उपज का विपणन राज्य के अधिकार क्षेत्र के विषय हैं और इन पर केंद्र को कानून बनाने का कोई अधिकार नहीं है। फिर भी केंद्र ने ये कानून बनाकर राज्यों के संवैधानिक अधिकारों का हनन किया है और देश के संघीय ढांचे पर भी हमला किया है। साथ ही किसी भी कानून को बनाने के लिए सरकार द्वारा संसद में अपनाई जाने वाली सामान्य प्रक्रियाओं और तमाम नैतिकताओं का भी उल्लंघन किया है। देश के किसान पहले ही दिन से इन कानूनों को वापिस लेने तथा समर्थन मूल्य पर खरीद की गारंटी की मांग का कानून बनाने को लेकर आंदोलन कर रहे हैं।
किसानों के निरंतर जारी आंदोलन की अगली कड़ी में 26 नवंबर को दिल्ली चलो के आह्वान के तहत दिल्ली के चारों ओर डेरा डाले बैठे किसानों को 6 मार्च को 100 दिन पूरे होने जा रहे हैं। इस दौरान किसानों ने केंद्र, हरियाणा, उत्तर प्रदेश की सरकारों के हर तरह के दमन, झूठे प्रचार, आंदोलन को बदनाम करने की साजिशों का मुकाबला किया है। साथ ही खुले आसमान के नीचे बैठे रहकर प्रकृति की मार को भी झेलते हुए सत्य और न्याय के लिए आंदोलन किया है। इस आंदोलन को अभूतपूर्व साथ व सहयोग जनता व अन्य जनवादी संगठनों का मिला है जिनके लिए देश के किसान सदा आभारी रहेंगे।
सरकार के हर तरह से आंदोलन को बदनाम करने दमनकारी कदम उठाने, झूठे मुकदमों मे फंसाने जैसी अलोकतांत्रिक कार्रवाईयों के बावजूद आंदोलन पूरी तरह से शांतिपूर्ण रहा है और पूरी तरह अनुशासित भी। आंदोलन के दौरान ढाई सौ किसानों ने अपने जीवन का बलिदान दिया है। इन सब के बावजूद आंदोलन और अधिक संगठित हुआ है और विस्तारित हुआ है। आज जहाँ दिल्ली के चारों ओर किसान डेरा डाले बैठे हैं वहीं पूरे देश में किसान अपने-अपने तौर-तरीकों से इन काले कानूनों को वापिस करवाने के लिए लड़ रहा है। पूरे देश में जगह-जगह किसान महापंचायत हो रही हैं, जिनमें लाखों की संख्या में किसान व अन्य जनसमूह भाग ले रहे हैं।
राजस्थान में भी करीब दो दर्जन किसान-महापंचायत हो चुकी है जिनमें रायसिंह नगर, हनुमानगढ़, नोहर, सरदार शहर, सीकर, कारीरी, घडसाना, पदमपुर, झुंझनूं, नागौर प्रमुख हैं। राज्य में और भी किसान-महापंचायतें प्रस्तावित है जिनमें जयपुर मे किसान महापंचायत 23 मार्च की तय की गयी है। जिसकी तैयारी की मीटिंग विभिन्न संगठनों की हो चुकी है। उससे पहले 17 मार्च को श्रीगंगानगर और संगरिया में किसान महापंचायतें हो रही हैं।

आंदोलन के तहत आगामी कार्यक्रम
नेताओं ने बताया कि संयुक्त किसान मोर्चा की मीटिंग 2 मार्च को हुई है उसमें लिए गए निर्णय भी राज्य में लागू किए जाएंगे। जो इस प्रकार हैं:

6 मार्च को किसानों को विभिन्न बॉर्डर पर बैठे 100 दिन पूरे हो जाएंगे। यह पूरा समय किसानों ने दमन, झूठे मुकदमों व सरकारी तौर पर आंदोलन को बदनाम करने की साजिशों के रूप में झेला है। अत: 6 मार्च को पूरे देश मे सरकारी दमन के विरोध दिवस के तौर पर मनाया जाएगा। इस दिन किसान और वे सब लोग जो आंदोलन के साथ है, अपने घरों पर काले झंडे लगाएंगे तथा काली पट्टी बांधेंगे। इसके अलावा दिल्ली के चारों ओर के.एम.पी.रोड को ग्यारह बजे से चार बजे तक जाम किया जाएगा।

8 मार्च को महिला दिवस है। उस दिन सभी मोर्चा पर महिलाएं भारी तादाद मे एकत्रित होंगी और अपने हक अधिकारों की बात के साथ साथ किसान आंदोलन का हिस्सा बनेगी। महिलाएं पहले भी किसान आंदोलन का सक्रिय हिस्सा है।

15 मार्च को देश के श्रमिक, कर्मचारी व किसान मिलकर केंद्र सरकार की किसान मजदूर विरोधी नीतियों के खिलाफ मिलकर देशव्यापी विरोध प्रकट करेंगे। किसानों के आंदोलन को मजदूर संगठनों का पहले से सक्रिय समर्थन मिल रहा है। अब किसान-मजदूर मिलकर सरकार की देश की बेचने की नीतियों का व किसानों-मजदूरों पर हो रहे हमलों का विरोध करेंगे।

राज्य और देश में किसान दोनों मोर्चा पर एक साथ काम करेंगे। गांव मे खेती-किसानी मिलजुल कर एक दूसरे के सहयोग से संभालेंगे और बार्डर पर पड़ाव में भी हर घर से एक आदमी की हाजरी पक्की करेंगे। दूसरे स्थानीय स्तर पर व्यापारी, मजदूर, खेतिहर मजदूर सब मिलकर आंदोलन की मजबूती के लिए काम करेंगे। राज्य के जिन हिस्सों मे आंदोलन कमजोर है वहां आंदोलन को खड़ा करने व मजबूत करने का काम हाथ में लिए जाने का निर्णय राज्य संयुक्त किसान मोर्चा ने किया है। संयुक्त किसान मोर्चा ने एम.एस.पी को कानून का दर्जा देने व कृषि उत्पाद की खरीद करने की मांग को लेकर कर्नाटक के गुलबर्गा से 5 मार्च से अभियान शुरू करने का फैसला किया जो देश की विभिन्न कृषि मंडियों में चलाया जाएगा। इसी तरह से पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों में भी किसानों से भाजपा को हराने की अपील करने का अभियान चलाया जाएगा। इसकी शुरुआत पश्चिम बंगाल से की जाएगी।