नई दिल्ली। केंद्रीय पशुपालन, मत्सय पालन और डेयरी मंत्री पुरुषोत्तम रूपाला ने कहा कि हिंदी भाषा के महिमा मंडन के लिए किसी अन्य भाषा का विरोध करने की ज़रूरत नहीं है। अपनी भाषा का महिमा मंडन करें। भारतीय भाषाओं का प्रभुत्व बढ़ेगा तो हिंदी अपने आप मुकुट शिरोमणि बन जाएगी। रूपाला ने हिंदी साहित्य भारती की केंद्रीय कार्यकारिणी की समापन बैठक में भाषा के महत्व और लोक संस्कृति के संबंध को व्यक्त किया। रूपाला ने कहा कि समाज की भावनाएं और संस्कृति भाषा के माध्यम से अभिव्यक्त होती है। हमारी लोक भाषाओं में कुछ शब्द ऐसे होते हैं जिनका अंग्रेजी या अन्य किसी भाषा में अनुवाद हो ही नहीं सकता, क्योंकि उनकी संस्कृति में ये शब्द हैं ही नहीं। उन्होंने गुजराती के दो शब्दों को उदाहरण दिया पशुओं को पानी पिलाने की सार्वजनिक जगह अवेड़ा और चीटिंयों को खिलाने के लिए कीड़ा भारत की ही संस्कृति है इसलिए अन्य देशों की नहीं, इसलिए इसका अनुवाद भी नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि टेक्नोलॉजी से भाषा पर अत्याचार हो रहा है इससे बचने का उपाय साहित्य भारती को सोचना होगा। भाषा का गौरव बढ़ेगा तभी नयी पीढ़ी का गौरव बढ़ेगा। उन्होंने कहा कि कमी नयी पीढ़ी में नहीं है कमी हमारी व्यवस्था में है। हमें हिंदी को सरल, सरस और बोलचाल की भाषा बनाना होगा। उन्होंने अपना उदाहरण देते हुए बताया कि कई बार उनके सामने हिंदी में जो सामग्री या संसद के प्रश्न उत्तर आते हैं तो इतनी क्लिष्ट हिंदी होती है कि उनका अर्थ उनको भी समझ नहीं आता तो नयी पीढ़ी को कैसे आएगा। इसलिए साहित्य भारती को सरकारी शब्दकोष को सरल बनाने जैसे अभियान भी अपने हाथ में लेने चाहिए।
हिंदी साहित्य भारती नव गठित संस्था है जिसकी पहली कार्यकारिणी की बैठक दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज में हुई। हंसराज कॉलेज की प्रिंसीपल डॉ. रमा शर्मा ने कहा कि आज़ादी के 75 साल तक राष्ट्र भाषा हिंदी उपेक्षित रही, जिस राष्ट्र के पास अपनी भाषा नहीं होती वो राष्ट्र गूंगा हो जाता है। गुजरात साहित्य अकादमी के अध्यक्ष पद्मश्री विष्णु पंड्या ने कहा कि हिंदी साहित्य भारती संस्था नहीं अभियान और आंदोलन है। उन्होंने कहा कि राष्ट्र की चेतना का साक्षात्कार करने वाली भागीरथी हिंदी भाषा है। हिंदी को जीवन शैली से जोड़ लेना चाहिए। भाषा देश समाज संस्कृति और राष्ट्र की गरिमा की रक्षक होती है। भाषा केवल शब्द नहीं है बल्कि इसके पीछे समाज की भावनाएं संस्कृति और सभ्यता होती है।
हिंदी साहित्य भारती के संस्थापक और अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. रविंद्र शुक्ल ने कहा कि दो दिन की केंद्रीय कार्यकारिणी की बैठक में हिंदी भाषा को अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर मान सम्मान स्वीकार्यता बढ़ाने पर गहन मंथन किया गया। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को एक लाख से ज्यादा पत्र सौंपने का निर्णय लिया गया जिसमें हिंदी को राष्ट्र भाषा बनाने का आग्रह किया गया है।