ब्लड कैंसर रोगियों में जीवन रक्षक प्रक्रिया : बोन मैरो ट्रांसप्लांट

डॉ. प्रकाश सिंह शेखावत, प्रमुख, बोन मैरो ट्रांसप्लांट, भगवान महावीर कैंसर हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर

जयपुर। बोन मैरो ट्रांसप्लांट कई प्रकार के ब्लड कैंसर रोगियों के लिए जीवन रक्षक एक मात्र उपचार प्रक्रिया है, जिसकी सहायता से रोगी को कैंसर मुक्त किया जा सकता है। इस सफल प्रक्रिया के प्रति जागरूकता की कमी होने के कारण कैंसर पेशेंट्स इस उपचार को लेने से कतराते हैं, उनके मन में इस ट्रांसप्लांट  को लेकर कई भ्रांतियां  भी हैं। इस वजह से वे इस सफल प्रक्रिया का लाभ नहीं उठा  पाते हैं । भगवान महावीर कैंसर हॉस्पिटल में अब तक हुए सभी ट्रांसप्लांट पूर्णतः  सफल रहे हैं।  27 वर्षों से कैंसर का उपचार दे रहे इस चिकित्सालय में सभी नवीनतम उपचार तकनीक मौजूद है और ट्रांसप्लांट प्रक्रिया में भी सरकारी योजनाओं को लाभ रोगियों को पूर्णतः मिल रहा है।

अस्वस्थ स्टेम सेल्स को स्वस्थ सेल्स से बदलने की प्रक्रिया  

बोन मैरो ट्रांसप्लांट, एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें रोगी की डैमेज स्टेम सेल्स को स्वस्थ सेल्स से बदल दिया जाता है। बोन मैरो या अस्थि मज्जा हड्डियों के बीच पाया जाने वाला एक पदार्थ होता है, जिसमें स्टेम सेल होते हैं । बोन मैरो ट्रांसप्लांट की आवश्यकता तब पड़ती है जब बोन मैरो ठीक तरह से काम करना बंद कर देता है या पर्याप्त मात्रा में स्वस्थ रक्त कोशिकाओ का उत्पादन ना करे।  यह ट्रांसप्लांट संक्रमण और विकारों को रोकने के लिए शरीर को पर्याप्त रेड ब्लड सेल्स, व्हाइट ब्लड सेल्स और प्लेटलेट्स को बनाने में मदद करता है। 

इस बीमारियों में जरूरी है ट्रांसप्लांट 

कई तरह की बीमारियों में ट्रांसप्लांट की जरूरत पड़ती है। जैसे ल्यूकेमिया ( ब्लड कैंसर का एक प्रकार), लिंफोमा (वाइट ब्लड सेल्स में होने वाला कैंसर), एक्यूट लिम्फोसाईटिक ल्यूकेमिया (बच्चों में होने वाला सबसे सामान्य प्रकार का कैंसर) अप्लास्टिक एनीमिया (रक्त कोशिकाओं का न बनना)। कैंसर और नॉन कैंसर बीमारियों के इलाज के लिए किया जाता है। प्लाज्मा सेल डिसऑर्डर के उपचार में भी बोन मैरो ट्रांसप्लांट मददगार है। 

बोन मैरो ट्रांसप्लांट के प्रकार 

बोन मैरो ट्रांसप्लांट दो प्रकार के होते है। पहला है ऑटोलोगस ट्रांसप्लांट। इस ट्रांसप्लांट में व्यक्ति के अपने शरीर से ही बोन मैरो लेकर उनका ट्रांसप्लांट किया जाता है। इस तरह के ट्रांसप्लांट का प्रयोग ब्लड कैंसर को ठीक करने के लिए किया जाता है। दूसरा है, एलोजेनिक ट्रांसप्लांट, इसमें ट्रांसप्लांट में किसी दूसरे व्यक्ति के शरीर से बोन मैरो को लेकर जरूरतमंद व्यक्ति में ट्रांसप्लांट किया जाता है। अलग-अलग रोगियों में उनकी बीमारी के आधार पर उन्हें कौन सा ट्रांसप्लांट किया जाएगा इसका निर्धारण किया जाता है।


इस प्रकार से होता है ट्रांसप्लांट

इस प्रक्रिया के दौरान, मरीज के शरीर से या किसी डोनर के शरीर से स्टेम सेल्स ( ऐसे सेल्स जो किसी भी प्रकार के ब्लड सेल बनाने में समर्थ होते हैं) को इकट्ठा किया जाता है। इसके बाद, कीमोथेरेपी या रेडिएशन थेरेपी की मदद से मरीज के शरीर में मौजूद डैमेज सेल्स को नष्ट किया जाता है। इसके बाद इकट्ठा किए गए हेल्दी स्टेम सेल्स को मरीज के शरीर में डाला जाता है। इन हेल्दी स्टेम सेल की मदद से मरीज का बोन मैरो स्वस्थ सेल्स बना पाता है।

ट्रांसप्लांट के बाद की चुनौतियां 

बोन मैरो ट्रांसप्लांट के बाद के कुछ माह का समय काफी चुनौतीपूर्ण होता है। ट्रांसप्लांट के बाद रोगी को अपने आप को संक्रमण से बचाना होता है। इसके लिए यह जरूरी है कि रोगी का आहर सही हो। डॉक्टर की ओर से दिए गए दिशा-निर्देशों को रोगी सही तरह से फॉलो करें । ट्रांसप्लांट के छह  माह तक अगर रोगी डॉक्टर की ओर से बनाए गए परहेज की पालना करें तो ट्रांसप्लांट की सफलता की संभावना काफी बढ़  जाती है। इस दौरान किसी भी तरह की परेशानी होने पर रोगी को बगैर किसी देरी के डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।