सिटी रिपोर्टर . जयपुर। अपनी बाइक की सर्विस कराने करीब 8-10 किलोमीटर दूर जाता हूं, क्योंकि उस मैकेनिक के साथ सालों से मधुर संबंध हैं। इसीलिए बाइक देने के बाद और उसे वापस लेने जाने के लिए प्राइवेट सिटी बस का उपयोग करता हूं। लॉकडाउन के बाद से पहली बार सर्विस के लिए बाइक दी और सिटी बस में सवार हो गया। ड्राइवर सीट के पास साइड वाली सीट पर बैठ गया। कंडक्टर को 10 रुपए का नोट दिया तो बोला 5 रुपए और दो। चूंकि मैं पहले 8 रुपए में ही सफर करता रहा हूं, इसलिए बोला कि 8 ही तो लगते हैं। कंडक्टर बोला कि नहीं 15 ही लगते हैं। मैंने कहा कि मैं तो हमेशा 8 रुपए में ही आता-जाता रहा हूं। रेट बढ़ गई क्या? कंडक्टर तो मेरी सुन ही नहीं रहा था। बोला- 15 रुपए ही लगते हैं। शांत भाव से हमारी बातें सुन रहा ड्राइवर बोला- आप सही कह रहे हो… 8 रुपए ही लगते थे… कोरोना से पहले… अब मिनीमन रेट ही 10 रुपए हो गई है। मैंने कहा- हां, यही तो मैं पूछ रहा हूं, रेट बढ़ गई क्या? मैंने 5 रुपए और दे दिए। कंडक्टर रवाना हो गया तो ड्राइवर से बात शुरू हो गई। ड्राइवर बोला- आप देखो ना 8-10 सवारी बैठी है और लगभग यही स्थिति पूरे दिन रहती है। डीजल के दाम बढ़ गए। खर्चा निकल जाए, वो ही काफी है। धीरे-धीरे बातों में ड्राइवर का दर्द झलकने लगा। मास्क के बावजूद उसकी आंखों में वो सब दिखने लगा, जो मैं कुछ समय पहले का बाइक सवार महसूस ही नहीं कर पा रहा था और 8 या 15 रुपए रेट में उलझा हुआ था। ड्राइवर नपी-तुली बात कर रहा था। वो अपनी व्यथा कुछ पूछने पर ही बता रहा था। इसलिए कुछ-कुछ पूछता गया और बात जारी रही। ड्राइवर ने बताया कि करीब तीन महीने से दुबारा बसें शुरू हुई हैं, लेकिन आधी ही चल रही हैं। आधे लोगों ने तो बसें खड़ी कर रखी हैं, आखिर कमाई ही नहीं हो तो कौन चलाए? अब मेरी नजर रोड पर चल रही सिटी बसों पर पडऩे लगी। लगभग सभी में 8-10 सवारियां ही नजर आई। दोपहर का समय था। ड्राइवर बोला- स्कूल, कॉलेज बंद पड़े हैं। सुबह-शाम की सवारियां हैं, दिन में ऐसा ही रहता है। ये तो बस की ईएमआई देनी है, इसलिए चला रहे हैं। और फिर ड्राइवरी के अलावा दूसरा कोई काम आता भी नहीं। पिछले कुछ दिनों में ही तेल में 4 रुपए बढ़ गए लेकिन हमारी रेट तो सरकार नहीं बदलती। साल-डेढ़ साल में कोई बदले तो बदले। ड्राइवर की बातें सुनते-सुनते कब मेरा स्टॉप आ गया, पता ही नहीं चला। उतरकर चलते-चलते सोचने लगा कि जब तेल की कीमतों में आए दिन बदलाव हो सकता है तो बसों के किराये में क्यों नहीं? आज तेल की कीमत ज्यादा तो किराया भी ज्यादा। रोज-रोज किराये में बदलाव से जनता को होने वाली परेशानी सोचने की सरकार को जरूरत नहीं है, क्योंकि जब जनता ने पेट्रोल-डीजल की दिन-प्रतिदिन बदलती कीमत से समझौता कर लिया है (तब कीमत बढऩे से पहले रात को पेट्रोल पंप पर लगने वाली लाइन पर अब हंसी आती है ) तो इन बेचारे बस वालों की परेशानी भी समझकर उस दिन का वाजिब किराया दे ही देंगे…