जयपुर। राज्य में निजी स्कूलों की फीस का मसला थमने का नाम नहीं ले रहा है। प्रदेशभर के अभिभावक लगातार निजी स्कूलों के खिलाफ मनमाने तरीके से फीस का दबाव बनाने और फीस के अभाव में बच्चों की पढ़ाई बाधित करने का आरोप लगाकर शिक्षा मंत्री और शिक्षा अधिकारियों को लगातार शिकायतें दर्ज करवा रहे हैं। अभिभावकों के प्रमुख संगठन संयुक्त अभिभावक संघ ने भी निजी स्कूलों पर मनमानी करने और सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना करने का आरोप लगाया है। साथ ही अपने आरोप में राज्य सरकार और प्रशासन पर निजी स्कूलों को संरक्षण देने का आरोप लगाते हुए दुबारा सड़कों पर उतरने की चेतावनी दी है। संयुक्त अभिभावक संघ का कहना कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश 3 मई 2021 को आया था जिसके बाद स्कूलों की एसोसिएशन ने दुबारा रिव्यू पिटीशन लगाई थी, जिसे 1 अक्टूबर 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था। किंतु आज दिनांक तक ना राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करवा रही है ना प्रशासन कोर्ट के आदेश का सम्मान कर रहा है। निजी स्कूल संचालक मनमाने तरीके से सुप्रीम कोर्ट के आदेश की गलत व्याख्या कर अभिभावकों पर फीस जमा करवाने का दबाव बना रहे हैं और फीस जमा नहीं होने पर बच्चों की पढ़ाई और एग्जाम तक रोक रहे हैं।
प्रदेश प्रवक्ता अभिषेक जैन बिट्टू ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश आने के साथ ही अभिभावकों ने स्कूलों को पत्र लिखकर फीस से सम्बंधित जानकारी मांगी किन्तु आज दिनांक तक स्कूलों द्वारा फीस को लेकर कोई जानकारी उपलब्ध नहीं करवाई जा रही है। इस संदर्भ में प्रदेशभर से अभिभावकों ने संयुक्त अभिभावक संघ को पत्र लिखे और मदद मांगी है जिसके बाद जयपुर, अजमेर, भीलवाड़ा, उदयपुर, चितौडग़ढ़, जोधपुर, कोटा, भरतपुर, बीकानेर, अलवर आदि जिलों के अभिभावकों के पत्रों पर शिक्षा मंत्री सहित जिला शिक्षा अधिकारियों, संयुक्त निदेशक, शिक्षा निदेशक को पत्र लिख चुके हैं किंतु आज तक कोई सुनवाई नहीं हुई।

निजी स्कूलों के चलते अभिभावकों की सुनवाई से भाग रही है राज्य सरकार : अरविंद अग्रवाल
संयुक्त अभिभावक संघ प्रदेश अध्यक्ष अरविंद अग्रवाल ने कहा कि राज्य सरकार निजी स्कूल संचालकों के गहरे दबाव में है और चुप्पी साधकर निजी स्कूलों की मनमानियों को पूरा संरक्षण देकर अभिभावकों की शिकायतों पर सुनवाई करने से भाग रही है। सुप्रीम कोर्ट ने सत्र 2020-21 की फीस को लेकर फीस एक्ट 2016 कानून के तहत सत्र 2019-20 की निर्धारित फीस का 85 प्रतिशत फीस जमा करवाने के आदेश सहित जो खर्चे स्कूलों द्वारा नहीं किए गए है उनको ना वसूलने का आदेश दिया था। इस आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि फीस के अभाव में कोई भी स्कूल संचालक किसी भी बच्चे की पढ़ाई, एग्जाम और रिजल्ट बिल्कुल भी नहीं रोक सकते हैं। इसके बावजूद ना स्कूलों में फीस एक्ट 2016 को लागू किया जा रहा है और ना ही उससे संबंधित जानकारी अभिभावकों को उपलब्ध करवाई जा रही है। स्कूलों ने स्थिति इतनी विकट कर दी है कि अब अभिभावकों को लीगल नोटिस जारी कर निर्धारित अवधि तक फीस जमा ना होने की स्थिति में कानूनी कार्यवाही की धमकी दे रहे हैं। सांगानेर स्थित एक स्कूल के अभिभावक ने बताया कि उनकी बच्ची का जन्म 2017 में हुआ था। 2020 में उन्होंने स्कूल में बच्ची का दाखिला नर्सरी कक्षा में करवाया था। मार्च 2020 में देशभर में लॉकडाउन लग गया था और 15 मार्च से सभी स्कूलों को बंद कर दिया गया था। 15 मार्च 2020 से आज तक मेरी बच्ची ने स्कूल से किसी भी प्रकार की ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों ही सुविधाएं बिल्कुल भी नहीं ली है। अब स्कूल ने मुझे वकील के जरिये 47500 रुपए फीस जमा करवाने का नोटिस भेजा है जो सरासर गलत है।