उदयपुर। दिव्यांग लोगों के जीवन को बेहतर बनाने में जुटे गैर लाभकारी संगठन नारायण सेवा संस्थान की ओर से आज यहां 35 वें सामूहिक विवाह समारोह का आयोजन किया गया। संस्थान के प्रयासों से आयोजित इस सादगीपूर्ण और गरिमामय विवाह समारोह में दिव्यांग और वंचित वर्ग के 11 जोड़े विवाह के पवित्र बंधन में बंधे और इन जोड़ों ने अग्नि के समक्ष फेरे लेने के साथ-साथ नियमित तौर पर मास्क पहनने का प्रण भी लिया, ताकि कोरोना वायरस महामारी के खतरे को कम किया जा सके। कोविड -19 से संबंधित प्रोटोकॉल के कारण इस बार विवाह समारोह में केवल रिश्तेदारों और जोड़ों के शुभचिंतकों को ही प्रवेश दिया गया।
इसी सिलसिले में संस्थान की ओर से चलाए जा रहे ‘दहेज को कहें ना!‘ अभियान को निरंतर गति देने की कोशिशों के तहत सामूहिक विवाह समारोह आयोजित किए जाते हैं। नारायण सेवा संस्थान न सिर्फ दिव्यांगों की भलाई के काम में जुटा है, बल्कि संस्थान का निरंतर यह भी प्रयास रहा है कि दिव्यांग लोगों को समाज में सामान्य तौर पर स्वीकार किया जाए और उन्हें आगे बढ़ने के समान अवसर उपलब्ध कराए जाएं। कोविड -19 के कारण इस बार सामूहिक विवाह समारोह में सीमित संख्या में ही लोग शामिल हुए। एनएसएस के दानदाताओं ने सभी विवाहित जोड़ों के लिए कन्या दान के रूप में घरेलू उपकरणों और उपहार में अन्य घरेलू वस्तुओं का इंतजाम किया।
35वें सामूहिक विवाह समारोह में शादी के बंधन में बंधे पूजा और कमलेश ने अपने अनुभव साझा करते हुए नारायण सेवा संस्थान के प्रयासों की मुक्त कंठ से प्रशंसा की। पूजा ने कहा, ‘‘मैंने एक दुर्घटना में अपना पैर खो दिया था। फिर मैंने नारायण सेवा संस्थान में संपर्क किया और यहां एक सर्जरी के माध्यम से मेरा निशुल्क इलाज किया गया। यह ऐसी सर्जरी थी, जिसके लिए मुझे और मेरे परिवार को काफी खर्च करना पड़ता। मुझे खुशी है कि मैं अब इस सर्जरी के कारण एक अच्छी जिंदगी जी सकती हूं। मैं अपने जीवन साथी कमलेशजी से मिलकर बहुत खुश हूं।”
दूसरी ओर कमलेश की दास्तान भी कुछ ऐसी ही है। कमलेश 3 साल की उम्र में पोलियो से ग्रसित हो गए और इसके बाद उन्हें बेहद चुनौतीपूर्ण जीवन गुजारना पड़ा। नारायण सेवा संस्थान में उनकी सर्जरी की गई और आज बैसाखी की मदद से चल-फिर सकते हैं। कई बाधाओं के बाद, कमलेश ने 2017 में उत्कृष्ट परिणाम के साथ अपनी पढ़ाई जारी रखी। फिर उन्होंने पंचायत सहायक के रूप में नौकरी भी हासिल की।
कमलेश का कहना है, ‘‘दिव्यांग होना सिर्फ एक शारीरिक विकार है, यह बीमारी नहीं है। मैं हमेशा भावनात्मक रूप से बहुत मजबूत रहा हूं और चुनौतियों का सामना किया है जिन्होंने मुझे मजबूत बनाया है। मैंने किराने की दुकान से अपना व्यवसाय शुरू किया और बाद में पंचायत सहायक के रूप में नौकरी हासिल की। मुझे बहुत खुशी है कि नारायण सेवा संस्थान जैसे संगठन मौजूद हैं, जो मूलभूत सुविधाओं से वंचित वर्ग के लोगों की मदद करते हैं और उन्हें जीवन का रास्ता दिखाते हैं। मुझे खुशी है कि मैं एक ऐसे जीवनसाथी से मिला, जो हर कदम पर मेरी सहायता करने को तत्पर है।”
नारायण सेवा संस्थान के अध्यक्ष प्रशांत अग्रवाल ने कहा, ‘‘सामूहिक विवाह समारोह एक ऐसा आयोजन है जो हमारे दिल के बेहद करीब है। इसी से जुड़ा हमारा विशेष अभियान है- ‘दहेज को कहें ना!‘ हम पिछले 18 वर्षों से इस अभियान को आगे बढ़ा रहे हैं। हमें इस बात की खुशी है कि संस्थान के प्रयासों से अब तक 2098 जोड़े एक सुखी और संपन्न वैवाहिक जीवन बिता रहे हैं। सभी के लिए एक स्थायी आजीविका प्रदान करने के लिए हम निशुल्क सुधारात्मक सर्जरी, कौशल विकास से संबंधित कक्षाएं और सामूहिक विवाह समारोहों का आयोजन करने के साथ-साथ प्रतिभाओं को विकसित करने से संबंधित गतिविधियों से जुड़ी सेवाएं भी प्रदान करते हैं। हमने नारायण सेवा संस्थान में दिव्यांग लोगों और वंचित लोगों की सेवा करके उन्हें सशक्त बनाया है और उन्हें स्थायी आजीविका प्रदान की है।”
राजस्थान, महाराष्ट्र, बिहार, गुजरात और कई अन्य राज्यों के लोगों ने नारायण सेवा संस्थान से संपर्क किया था और अपने विवाह के लिए सहायता करने का आग्रह किया था। गौरतलब है कि गैर-लाभकारी संगठन नारायण सेवा संस्थान (एनएसएस) ने हमेशा समाज के वंचित वर्ग के लोगों और दिव्यांगों की समग्र भलाई और उनके सामुदायिक उत्थान के लिए प्रयास किया है। संस्थान ने खास तौर पर पोलियो से ग्रस्त और जन्म से दिव्यांग लोगों की बेहतरी के लिए काम किया है।