कविता : सच्चे रिश्ते धीरे-धीरे सिमट रहे हैं…
– मनीष पाण्डेय “मनु” (लक्जमबर्ग) – रोज मर्रा के काम काज निपटाते-निपटाते जिन्दगी के हंसी लम्हे निपट रहे हैं सुविधाओं से लिपटने की होड़ में अकेलापन और अवसाद लिपट रहे…
– मनीष पाण्डेय “मनु” (लक्जमबर्ग) – रोज मर्रा के काम काज निपटाते-निपटाते जिन्दगी के हंसी लम्हे निपट रहे हैं सुविधाओं से लिपटने की होड़ में अकेलापन और अवसाद लिपट रहे…
– प्रियंका सिंह (रोटरडम द नीदरलैंड्स) – ज़िन्दगी, बहुत ख़ास है तू ! कभी भारी, तो कभी हल्का, कोई लिबास है तू !! तेरा अंदाज़-ए-बयां भी कुछ निराला सा !…
-विश्वास दुबे (द हेग, नीदरलैंड्स) – माथे पर तिलक लगा के भव्य सा कवच सजा के स्वर्ण कुंडल चमका के निज ओज को दमका के रणचंडी को करते ध्यान कर…
– सुनीता पाहूजा (मारीशस) – मैंने देखी है इक हकीकत खुद को उड़ते हुए देखा है मैंने परों के साथ नहीं, बिना परों के खुद को उड़ते हुए देखा है…
– मनीष कुमार गुप्ता ( अमेरिका ) – जब भी नदी उमड़ती देखता हूँ या बर्फ़ लदे पर्वत घुमड़ते झरने लहराते दरख़्त झट फोन निकाल कर लेता हूँ फ़ोटो या…